सोरठा –
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ज्ञानघन ।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥१॥
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम् ।
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ॥२॥
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम् ।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥३॥
श्रीहनुमन्नमस्कारः –
गोष्पदी-कृत-वारीशं मशकी-कृत-राक्षसम् ।
रामायण-महामाला-रत्नं वन्देऽनिलात्मजम् ॥ १॥
अञ्जना-नन्दनं-वीरं जानकी-शोक-नाशनम् ।
कपीशमक्ष-हन्तारं वन्दे लङ्का-भयङ्करम् ॥ २॥
महा-व्याकरणाम्भोधि-मन्थ-मानस-मन्दरम् ।
कवयन्तं राम-कीर्त्या हनुमन्तमुपास्महे ॥ ३॥
उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलं
यः शोक-वह्निं जनकात्मजायाः ।
आदाय तेनैव ददाह लङ्कां
नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम् ॥ ४॥
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं
श्रीराम-दूतं शिरसा नमामि ॥ ५॥
आञ्जनेयमतिपाटलाननं
काञ्चनाद्रि-कमनीय-विग्रहम् ।
पारिजात-तरु-मूल-वासिनं
भावयामि पवमान-नन्दनम् ॥ ६॥
यत्र यत्र रघुनाथ-कीर्तनं
तत्र तत्र कृत-मस्तकाञ्जलिम् ।
बाष्प-वारि-परिपूर्ण-लोचनं
मारुतिर्नमत राक्षसान्तकम् ॥ ७॥
सोरठा
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ज्ञानघन
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ॥१॥
इस सोरठा में हनुमान जी की महिमा का गुणगान किया गया है। इसमें कहा गया है कि हनुमान जी पवनपुत्र हैं और उनके हृदय में भगवान राम निवास करते हैं। वह अज्ञानरूपी अंधकार को ज्ञानरूपी प्रकाश से दूर करते हैं, जैसे अग्नि जंगल को जलाकर राख कर देती है। राम जिनके हृदय में वास करते हैं, वे हमेशा विजय प्राप्त करते हैं।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ॥२॥
हनुमान जी अतुलनीय बल के धाम हैं और उनके शरीर का वर्ण सोने के पर्वत जैसा है। वे राक्षसों के वन को जलाने वाले अग्नि की तरह हैं और ज्ञानियों में अग्रणी हैं। यह श्लोक हनुमान जी के अद्वितीय बल, साहस और ज्ञान की प्रशंसा करता है।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥३॥
हनुमान जी सभी गुणों के भंडार हैं और वानरों के राजा हैं। वे रघुनाथ जी के प्रिय भक्त हैं और पवनपुत्र हैं। मैं उन्हें नमन करता हूँ। इस श्लोक में हनुमान जी की भक्ति, गुण और नेतृत्व की विशेषता का वर्णन किया गया है।
श्रीहनुमन्नमस्कारः
गोष्पदी-कृत-वारीशं मशकी-कृत-राक्षसम्
रामायण-महामाला-रत्नं वन्देऽनिलात्मजम् ॥१॥
मैं पवनपुत्र हनुमान को वंदन करता हूँ, जिन्होंने समुद्र को गोपालक के पग में पड़ने वाले जल जैसा सरल कर दिया और राक्षसों को जैसे मच्छर बना दिया। वे रामायण रूपी महा माला के अमूल्य रत्न हैं।
अञ्जना-नन्दनं-वीरं जानकी-शोक-नाशनम्
कपीशमक्ष-हन्तारं वन्दे लङ्का-भयङ्करम् ॥२॥
मैं वीर अंजनीनंदन हनुमान को प्रणाम करता हूँ, जिन्होंने जानकी (सीता माता) के शोक को दूर किया, जो वानरों के राजा हैं और जिन्होंने अक्षयकुमार का वध किया। वे लंका के लिए भय उत्पन्न करने वाले थे।
महा-व्याकरणाम्भोधि-मन्थ-मानस-मन्दरम्
कवयन्तं राम-कीर्त्या हनुमन्तमुपास्महे ॥३॥
हनुमान जी महान व्याकरण के समुद्र को मथने वाले हैं और वे राम की कीर्ति का गुणगान करते हुए कवियों में श्रेष्ठ हैं। मैं उनकी उपासना करता हूँ। यह श्लोक उनके ज्ञान और विद्वता को दर्शाता है।
उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलं
यः शोक-वह्निं जनकात्मजायाः ।
आदाय तेनैव ददाह लङ्कां
नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम् ॥४॥
मैं अंजनी के पुत्र हनुमान को नमन करता हूँ, जिन्होंने समुद्र को आसानी से पार किया और सीता माता के शोक रूपी अग्नि को हर लिया। उन्हीं हनुमान जी ने लंका को जला दिया था।
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं
श्रीराम-दूतं शिरसा नमामि ॥५॥
मैं श्रीराम के दूत हनुमान जी को सिर झुकाकर नमन करता हूँ, जिनका मन का वेग वायु के समान है, जिन्होंने इंद्रियों को वश में कर लिया है, और जो बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं। वे वानर सेना के प्रमुख हैं और पवनपुत्र हैं।
आञ्जनेयमतिपाटलाननं
काञ्चनाद्रि-कमनीय-विग्रहम् ।
पारिजात-तरु-मूल-वासिनं
भावयामि पवमान-नन्दनम् ॥६॥
मैं हनुमान जी की भावना करता हूँ, जिनका मुख अति सुंदर है, जिनका शरीर सोने के पर्वत जैसा चमकदार है, और जो पारिजात वृक्ष के मूल में निवास करते हैं। वे पवन के पुत्र हैं और अति प्रिय हैं।
यत्र यत्र रघुनाथ-कीर्तनं
तत्र तत्र कृत-मस्तकाञ्जलिम् ।
बाष्प-वारि-परिपूर्ण-लोचनं
मारुतिर्नमत राक्षसान्तकम् ॥७॥
जहां-जहां श्रीराम का कीर्तन होता है, वहां-वहां हनुमान जी अपने सिर को झुका कर, हाथों को जोड़कर और आंखों में आंसू भरे हुए दिखाई देते हैं। वे राक्षसों का अंत करने वाले हैं।